गोपाल गणेश आगरकर

Posted on: 2023-07-14


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गोपाल गणेश आगरकर एक महान समाज सुधारक, सम्पादक, शिक्षाविद् एवं लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक के सहयोगी थे गोपाल गणेश आगरकर जी ने शिक्षा का जमकर प्रचार-प्रसार किया, उनका मानना था कि शिक्षा से ही राष्ट्र की उन्नति और पुनर्निर्माण संभव है। इन्होंने अपने जीवन काल में शिक्षण संस्थान जैसे की New English School The Dacen Education Society और Fergusan Collage  की स्थापना करने में तिलक, विष्णुशास्त्री चिपलूनकर, महादेव बल्लाल नामजोशी, व्ही.एस. आप्टे, व्ही.बी. केलकर, एम.एस. गोले और एन.के धराप जैसे लोगों की बहुत मदद किये. गोपाल गणेश आगरकर मराठी साप्ताहिक पत्रिका केसरी के पहले संपादक थे, जिसे उन्होंने साल 1880-1881 के दौरान लोकमान्य तिलक के साथ शुरु किया था।

1882 में कोल्हापुर के दीवान पर टिपण्णी करने की वजह से इनके ऊपर मानहानि का केस दर्ज हो गया जिसके वजह से इन्हें 101 दिन तक कारावास की सजा हुई. इसी दौरान इन्होंने जेल में शेक्सपियर के नाटक ‘हॅम्लेट का मराठी अनुवाद किया जिसका नाम था “विकार विलसित”. जेल से निकलने के बाद इन्होंने डोंगरी जेल के अपने अनुभव को एक पुस्तक का रूप दिया जिसका नाम है “डोंगरी के जेल के 101 दिन” इन्होंने भारतीय समाज में व्याप्त रुढ़िवादिता जैसे बालविवाह, मुंडन, नस्लीय भेदभाव, अस्पृश्यता आदि का घोर विरोध किया. आगरकर जी और उनके मित्र लोकमान्य तिलक के साथ किसी सामाजिक विषय को लेकर आपसी मतभेद हो गया जिसके चलते उन्होंने केसरी को छोड़ दिया।

इसके बाद गणेश आगरकर जी ने खुद की ‘सुधारक’ नामक एक नया साप्ताहिक पत्रिका निकालने की शुरुआत की, जिसमें उन्होंने बाल विवाह, जातिगत भेदभाव और छूआछूत के खिलाफ अभियान चलाया और हिन्दू धर्म के अंधविश्वास और आडम्बरों के खिलाफ अपनी आवाज बुलंद की, इसके साथ ही आगरकर जी ने विधवा पुनर्विवाह का खुलकर समर्थन किया। गोपाल गणेश आगरकर जी का मानना था कि लड़कों की शादी 20 से 22 साल की उम्र में जबकि लड़कियों की शादी 15-16 साल की उम्र में कर देनी चाहिए। इसके अलावा उन्होंने 14 साल तक की अनिवार्य शिक्षा का भी पुरजोर समर्थन किया था। अपने जीवन में सामाजिक कार्य करने वालों के आदर्श स्वरूप महान समाज सेवी गोपाल गणेश आगरकर जी का 39 वर्ष के ही अवस्था में ही स्वर्गवास हो गया. अपने सामाजिक जीवन के काल में उन्होंने महाराष्ट्र के लोगों में शिक्षा एवं मानवीय मूल्यों का प्रचार प्रसार किया और अपने जीवन के अंतिम काल में भी वो फर्ग्युसन कॉलेज के प्राचार्य के पद पर प्रतिष्ठित  थे.