पौराणिक कथा अध्याय 1-देवासुर संग्राम

Posted on: 2023-10-02


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दिति और अदिति दो बहनें थीं। दोनों प्रजापति दक्ष की कन्याएँ थीं। दोनों का विवाह महर्षि मरीच के पुत्र कश्यप से हुआ था।

दिति के दो पुत्र उत्पन्न हुए हिरण्याक्ष तथा हिरण्यकशिपु। दोनों दैत्य कहलाए। अदिति के बारह पुत्र उत्पन्न हुए और वे आदित्य कहलाए। इनमें सबसे बड़ा था धाता। दूसरा था इंद्र जो देवलोक का राजा बना। सबसे छोटा था विष्णु। विष्णु बहुत ही बलवान् तथा सुंदर था।

हिरण्याक्ष तथा हिरण्यकशिपु दिति के पुत्र होने से दैत्यकहलाए थे, परंतु दोनों अति बलशाली तथा वीर योद्धा होने से कामी,लोभी तथा अभिमानी हो गए। तब वे मनमानी करने लगे। प्रजा को लूटना वे अपना अधिकार समझने लगे। अतः वे असुर कहलाने लगे।

अभिप्राय यह है कि असुर चरित्रहीन और स्वार्थी, लोभी और इंद्रियों के दास व्यक्ति को कहा जाता है।

ऐसे ही असुरों की सृष्टि होने लगी थी। देवताओं की संतान असुर और असुरों की संतान देवता हो रहे थे।

उस समय देवासुर संग्राम हुआ। इस देवासुर संग्राम में यक्ष, दिति के पुत्र दैत्य और अदिति के पुत्र आदित्य परस्पर नहीं लड़े थे। यद्यपि दोनों के संस्कारों और विचारों से भेद होने के कारण दोनों मेंमेल-जोल नहीं था, परंतु यह देवासुर संग्राम इन परिवारों में न होकर आचार-विचार में भेद रखनेवालों में हुआ था।

असुर और देवता, दोनों ने, युद्ध में भारी शौर्य का प्रदर्शन किया था। परिणाम यह हुआ था कि दोनों ही बहुत बड़ी संख्या में मारे गए थे। इस देवासुर संग्राम के परिणामस्वरूप देवता न केवल संख्या में कम रह गए थे, वरन् उनमें उत्साह और शक्ति का भी भारी हास हुआ था।

ऐसे लोग बहुत बड़ी संख्या में रह गए जो निस्संतान हो संसार से विरक्त हो गए थे। नगरों-के-नगर युवकों से रहित हो गए थे और उनका स्त्री-वर्ग स्वेच्छा से असुरों के नगरों में जा-जाकर बसने लगा था। युवकों के अभाव में धन-संचय का साधन भी नहीं रहा था और बचे-खुचे देवता साधनविहीन हो, जीवन चलाने में भी कठिनाई अनुभव करने लगे थे। इसके विपरीत असुर फल-फूल रहे थे। संख्या में ह्रास तो असुरों का भी हुआ था, परंतु विवाहादि के नियमों के उदार रखने से और सांसारिक उन्नति में रत उन्होंने अपनी कमियों को बहुत ही न्यून काल में पूरा कर लिया था। एक-एक असुर पुरुष कई-कई स्त्रियों को घर में रख संतान उत्पन्न करने लगा था। बूढ़े युवतियों से विवाह करने लगे थे और युवतियाँ अल्पवयस्क कुमारों से विवाह कर संतान उत्पन्न करने लगी थीं। इसके अतिरिक्त वे अपने युद्ध में क्षीण हुए साधनों को येन-केन-प्रकारेण पूरा करने में लग गए।

असुरों ने न केवल आदित्यों की सम्पत्ति और स्त्री-समाज को आत्मसात करना आरंभ कर दिया, वरन् दैत्यों के भी क्षेत्र पर हाथ फेरना आरंभ कर दिया था।