स्वामी श्रद्धानन्द सरस्वती भारत के शिक्षाविद, स्वतंत्रता संग्राम सेनानी तथा आर्यसमाज के संन्यासी थे जिन्होंने स्वामी दयानन्द सरस्वती की शिक्षाओं का प्रसार किया। वे भारत के उन महान राष्ट्रभक्त संन्यासियों में अग्रणी थे, जिन्होंने अपना जीवन स्वाधीनता, स्वराज्य, शिक्षा तथा वैदिक धर्म के प्रचार-प्रसार के लिए समर्पित कर दिया था।
स्वामी श्रद्धानंद का जीवन परिचय
स्वामी श्रद्धानन्द सरस्वती जिन्हें आर्यसमाज के प्रचारक के रूप में याद किया जाता है. इनका जन्म 2 फरवरी 1856 को पंजाब के जालन्धर में हुआ था. स्वामी श्रद्धानन्द सरस्वती के पिताजी उस समय की अंग्रेजी पुलिस के सिपाही रहे थे. इसी कारण पिता के तबादले के चलते उनका बचपन कही स्थानों पर गुजरा. बचपन में सरस्वती को उनके दोस्त वृहस्पति नाम से बुलाया करते थे.
आरंभिक जीवन (शिक्षा, विवाह)
पंजाब के जालन्धर में जन्में वैदिक धर्म के प्रचारक श्रद्धानंद जी का आरम्भिक जीवन विभिन्न स्थानों में व्यतीत हुआ. इनके पिता ब्रिटिश पुलिस में अधिकारी थे इस कारण तबादलों के चलते ये अपने परिवार के साथ एक से दूसरे स्थान जाते रहे.
नयें नयें स्थानों पर रहने के कारण स्वामी श्रद्धानंद की आरम्भिक शिक्षा विधिवत रूप से नहीं हो पाई. घर में इन्हें वृहस्पति और मुंशीराम के नाम से जाना जाता था.
एक बार स्वामी दयानंद सरस्वती का बरेली में प्रवचन का कार्यक्रम था, नानकचंद अपने पुत्र मुंशीराम के साथ यहाँ सरस्वती को सुनने पहुचे, बालक मुंशी पर सरस्वती के तर्कों का बड़ा असर हुआ और ये आर्य समाज की और प्रवृत हुए.
शिक्षा पूर्ण करने के बाद मुंशीराम ने वकालत से अपने करियर की शुरुआत की, इसी समय शिवा देवी के साथ इनका विवाह सम्पन्न हुआ और जीवन सुख पूर्वक व्यतीत हो रहा था.
इनके दो पुत्र एवं दो पुत्रियाँ हुई मगर जब ये 35 वर्ष के हुए तो शिवा देवी का देहांत हो गया. पत्नी वियोग में मुंशीराम का सांसारिक जीवन से मोह भंग हो गया और वर्ष 1917 में स्वामी श्रद्धानंद नाम के साथ सन्यास धारण कर लिया.
स्वामी श्रद्धानन्द का सामाजिक व राजनैतिक जीवन
दयानन्द सरस्वती के सम्पर्क में आने पर यह उनके जीवन से बहुत प्रभावित हुए तथा उनकी दीक्षा ले ली. जिसके बाद इन्होने उनका अनुसरण किया तथा आर्य समाज सुधारक के रूप में भूमिका निभाई.
स्वामी श्रद्धानन्द, सरस्वती के विचारो से कार्य सिद्धांतो तथा व्यवहारों से प्रभावित श्रद्धानन्द ने आर्य समाज के विकास के लिए कार्य करने शुरू कर दिया. वे आर्य समाज के आंदोलन के सामाजिक आदर्शो का प्रचार करने लगे.
स्वामी ने हिन्दू धर्म में व्याप्त अंधविशवास और बुराइयों जैसे अंध विश्वास, जाति-प्रथा, छुआछूत तथा मूर्ति पूजा आदि के प्रबल विरोध आदि सामाजिक परिवर्तन के सूत्रधार बने.
1902 में स्वामी श्रद्धानन्द सरस्वती ने देश के परम्परागत शिक्षा पद्दति के अनुरूप नए रूप में हरिद्वार में एक आंतरिक विश्वविद्यालय ”गुरुकुल कागड़ी ” की स्थापना की.
उन्होंने जालन्धर में एक महिला कॉलेज की स्थापना की तथा दिल्ली में एक सामाजिक एकता व समरसता लाने के लिए दलित उद्धार सभा की स्थापना की.
उन्होंने एक साप्ताहिक पत्रिका सत्य धर्म प्रचारक का सम्पादन किया ताकि स्वामी दयानंद सरस्वती के विचारों व चिन्तनों से सारे देश के लोगों लाभान्वित हो सके.
इसके पश्चात स्वामी श्रद्धानन्द सरस्वती जी आर्य समाज संगठन की ओर से स्थापित शुद्धि सभा के अध्यक्ष भी चुने गये. ताकि जोर जबरदस्ती से चल रहे हिन्दू से मुस्लिम तथा इसाई धर्म में हो रहे स्थान्तरण को रोका जा सके.
वर्ष 1919 में कांग्रेस के वार्षिक अधिवेशन में स्वागत समिति के अध्यक्ष नियुक्त किये गये थे. 1922 में इन्होने सत्याग्रह में भाग लिया. 23 दिसंबर 1926 को एक मुस्लिम कट्टरपंथी ने इस महान समाज सुधारक स्वामी श्रद्धानन्द सरस्वती की हत्या कर दी थी.
13 अप्रैल 1917 के दिन से सन्यास ग्रहण के बाद श्रद्धानंद जी दलितोद्धार आर्य समाज द्वारा शुरू किये गये शुद्धि आंदोलन के अलावा भारत में हिन्दू मुस्लिम एकता समन्वय के लिए हमेशा कार्यरत रहे.
हिन्दू धर्म में सुधारात्मक सोच तथा इनके योगदान को स्मरण करते हुए स्वामी श्रद्धानंद जी को हिन्दू पुरोधा भी कहा जाता है.उन्होंने न केवल आध्यात्मिक रूप से भारत को मजबूत करने का प्रयत्न किया.
बल्कि हिंदी को भारत की राष्ट्रभाषा बनाने की न केवल समर्थन किया करते थे. बल्कि स्वामी श्रद्धानन्द ही वे पहले व्यक्ति थे जिन्होंने दक्षिण भारत में हिंदी का प्रचार-प्रचार किया तथा इसे आम लोगों की भाषा बनाने का यत्न किया था.
स्वाधीनता आंदोलन में सक्रिय
स्वामी श्रद्धानन्द ने दलितों की भलाई के कार्य को निडर होकर आगे बढ़ाया, साथ ही कांग्रेस के स्वाधीनता आंदोलन का बढ़-चढ़कर नेतृत्व भी किया। कांग्रेस में उन्होंने 1919 से लेकर 1922 तक सक्रिय रूप से महत्त्वपूर्ण भागीदारी की। 1922 में अंग्रेज़ सरकार ने उन्हें गिरफ्तार किया, लेकिन उनकी गिरफ्तारी कांग्रेस के नेता होने की वजह से नहीं हुई थी, बल्कि वे सिक्खों के धार्मिक अधिकारों की रक्षा के लिए सत्याग्रह करते हुए बंदी बनाये गए थे। स्वामी श्रद्धानन्द कांग्रेस से अलग होने के बाद भी स्वतंत्रता के लिए कार्य लगातार करते रहे। हिन्दू-मुस्लिम एकता के लिए स्वामी जी ने जितने कार्य किए, उस वक्त शायद ही किसी ने अपनी जान जोखिम में डालकर किए हों। वे ऐसे महान् युगचेता महापुरुष थे, जिन्होंने समाज के हर वर्ग में जनचेतना जगाने का कार्य किया।
हत्या
श्रद्धानन्द जी सत्य के पालन पर बहुत जोर देते थे। उन्होंने लिखा है- "प्यारे भाइयो! आओ, दोनों समय नित्य प्रति संध्या करते हुए ईश्वर से प्रार्थना करें और उसकी सत्ता से इस योग्य बनने का यत्न करें कि हमारे मन, वाणी और कर्म सब सत्य ही हों। सर्वदा सत्य का चिंतन करें। वाणी द्वारा सत्य ही प्रकाशित करें और कमरे में भी सत्य का ही पालन करें।23 दिसम्बर 1926 को अछूतों के मसीहा श्रद्धानंद गोली मारने के कारण इस संसार को अलविदा कर दिए. स्वामी की हत्या के दो दिन पश्चात कांग्रेस अधिवेशन में महात्मा गांधी का भाषण सभी को आश्चर्यचकित कर देने वाला था.
गांधीजी ने इस भाषण में रशीद का पूर्ण सहयोग करते हुए. उन्हें निर्दोष बताया. उन्होंने बताया कि वे मेरे भाई के समान है. मै उनके लिए वकालत में लडूंगा. जो व्यक्ति देश को धर्मो में बाँट रहे है. जो हमारे लिए उचित नही है.
इस प्रकार स्वामी की हत्या पर गांधीजी ने पूर्णतया रशीद का साथ दिया. लेकिन रशीद एक अपराधी होने के कारण उसे कोई नहीं बचा सका. और उन्हें सरकार के नियमों के अनुसार फांसी की सजा सुनाई गई.
स्वामी श्रद्धानंद सरस्वती को किया याद
सहारनपुर, जेएनएन। गंगोह में आर्य समाज गंगोह में रविवार को स्वामी श्रद्धनंद सरस्वती के बलिदान दिवस पर हुए कार्यक्रम में श्रद्धा सुमन अर्पित कर उन्हें याद किया गया। आर्य विद्वान धीरज कुमार आचार्य ने कहा कि स्वामी श्रद्धानंद महर्षि दयानंद के अनन्य शिष्य, महान राष्ट्र भक्त व आर्य समाज के अग्रणी नेता थे। स्वामी श्रद्धानन्द ने अपने जीवन काल में जो हिदु विधर्मी हो गए थे उनकी घर वापसी कराई तथा इस कार्य को करते हुए 1926 में राष्ट्र व धर्म के लिए अपने प्राणों की आहूति दे दी।
कार्यक्रम में देवेंद्र प्रधान, राज कुमार, राजेंद्र कुमार, रामरिक्षपाल, आर्य राकेश, अनिल आर्य, रणवीर आर्य, रमेशचंद बृहमपाल गुप्ता आदि रहे।
हक की लड़ाई में किसानों के साथ सपा सरकार: चौ. रुद्रसेन
नानौता: सपा जिलाध्यक्ष रुद्रसेन ने कहा कि भाजपा सरकार की गलत नीतियों का ही परिणाम है कि देश के अन्नदाताओं को अपने हक के लिए भी सड़कों पर लड़ाई लड़नी पड़ रही है। क्षेत्र के गांव बुंदूगढ़ में पार्टी के जिला सचिव चौधरी अरशद के निवास पर संपन्न हुई बैठक में उन्होंने कहा कि कार्यकर्ताओं को पार्टी की नीतियों को जन जन तक पहुंचाना होगा। उन्होंने किसानों को नए कृषि कानून से होने वाले नुकसान के बारे में बताया। सपा किसानों की लड़ाई में उनके साथ है। सपा जिला सचिव चौधरी अरशद व विधानसभा अध्यक्ष पृथ्वीराज सिंह ने संयुक्त रुप से कहा कि जिलाध्यक्ष चौधरी रुद्रसेन के नेतृत्व में लगातार पार्टी पूरे जनपद में मजबूत हो रही है। बैठक में जिला सचिव चौधरी अरशद, गंगोह विधानसभा अध्यक्ष पृथ्वीराज सिंह, नगराध्यक्ष सादिक सैफी, शमशेर खान, उमरदीन आदि उपस्थित रहे।