वंदे मातरम् के रचयिता: बंकिमचंद्र चटर्जी का प्रेरणादायक जीवन

Posted on: 2025-06-27


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 राष्ट्रीय गीत 'वंदे मातरम' के रचयिता *बंकिमचंद्र चटर्जी* की जयंती है। उन्होंने अपने इस अमर गीत से शस्य-श्यामला भारत भूमि की वंदना की। बंकिमचंद्र चटर्जी, जिन्हें *बंकिमचंद्र चट्टोपाध्याय* के नाम से भी जाना जाता है, एक प्रसिद्ध बंगाली लेखक, कवि और पत्रकार थे। उनका जन्म 27 जून, 1838 को हुआ था और उन्हें अक्सर भारत के सबसे महान उपन्यासकारों में से एक माना जाता है। उन्होंने 19वीं शताब्दी के दौरान बंगाल के सांस्कृतिक और बौद्धिक पुनर्जागरण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। उनकी रचनाओं में राष्ट्रवाद और सामाजिक टिप्पणियों की गहरी भावना निहित है, जिसने उन्हें भारत के स्वतंत्रता संग्राम में एक महत्वपूर्ण व्यक्ति बनाया।


बंकिमचंद्र चट्टोपाध्याय की कुछ प्रसिद्ध पुस्तकों में *'आनंद मठ' (1882)* शामिल है, जो ब्रिटिश राज से लड़ने वाले भिक्षुओं की कहानी कहती है और जिसमें प्रतिष्ठित गीत "वंदे मातरम" शामिल है। *'दुर्गेशनंदिनी' (1865)* एक और महत्वपूर्ण रचना है, जबकि *'कपालकुंडला' (1866)* एक सशक्त महिला नायक वाला रोमांटिक उपन्यास है। *'देवी चौधुरानी' (1884)* में एक महिला डाकू रानी को दर्शाया गया है जो ब्रिटिश शासन को चुनौती देती है, तथा सशक्त एवं स्वतंत्र महिलाओं को प्रदर्शित करती है।


राष्ट्रीय गीत *'वंदे मातरम'* की रचना बंकिमचंद्र चटर्जी ने अपने उपन्यास *'आनंद मठ'* में की थी, जो वर्ष 1882 में प्रकाशित हुआ। 'आनंद मठ' में ईस्ट इंडिया कंपनी से वेतन के लिए लड़ने वाले भारतीय मुसलमानों और संन्यासी ब्राह्मण सेना का वर्णन किया गया है। 'वंदे मातरम' गीत इतना लोकप्रिय हुआ कि स्वयं गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर ने इसका संगीत तैयार किया। बंकिमचंद्र चटर्जी की रचनाओं का दुनिया की कई भाषाओं में अनुवाद हुआ और उनकी कई रचनाओं पर फिल्में भी बनीं। शासकीय सेवा में रहते हुए भी, उन्होंने स्वतंत्रता की चेतना जगाने में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।


बंकिमचंद्र उस समय के कवि और उपन्यासकार थे जब बांग्ला साहित्य का विकास बहुत ही कम था, न कोई आदर्श था और न ही रूप या सीमा का कोई विचार। अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद परिवार की आजीविका चलाने के लिए उन्होंने सरकारी सेवा की और 1891 में सेवानिवृत्त हुए। उनमें देश के प्रति राष्ट्रीय प्रेम शुरुआत से ही था, जो उनकी रचनाओं में साफ झलकता है। उन्हें अपनी मातृभाषा बांग्ला से बहुत लगाव था। युवावस्था में उन्होंने अपने एक मित्र का अंग्रेज़ी में लिखा हुआ पत्र बिना पढ़े ही इस टिप्पणी के साथ लौटा दिया था कि, 'अंग्रेज़ी न तो तुम्हारी मातृभाषा है और न ही मेरी'। सरकारी सेवा में रहते हुए भी उन्होंने कभी अंग्रेज़ी भाषा को अपनी कमज़ोरी नहीं बनने दिया।


राष्ट्रवादी कल्पना में बंकिम का सबसे उल्लेखनीय योगदान राजनीतिक उपन्यास *'आनंद मठ'* था, जो 18वीं शताब्दी के उत्तरार्ध के 'संन्यासी विद्रोह' पर आधारित था। उनकी शुरुआती रचनाएँ ईश्वर चंद्र गुप्ता के साप्ताहिक अख़बार संगबाद प्रभाकर में छपीं। उनका पहला प्रकाशित उपन्यास *'राजमोहन की पत्नी'* था, जिसे अंग्रेज़ी में लिखा गया पहला भारतीय उपन्यास माना जाता है। 'आनंद मठ' में ही बंकिम ने 'वंदे मातरम' कविता लिखी थी। इस उपन्यास ने बंकिम को बंगाली पुनर्जागरण का एक प्रभावशाली व्यक्ति बना दिया, जिन्होंने अपने साहित्यिक अभियान के माध्यम से बंगाल के लोगों को बौद्धिक रूप से प्रेरित रखा।


उन्होंने बंगाली भाषा में प्रवेश किया और बंगाली का पहला आधुनिक संग्रह बनाने की परियोजना शुरू की। उन्होंने 1866 में *कपालकुंडला, 1869 में **मृणालिनी, 1873 में **विषबृक्ष, 1877 में **चंद्रशेखर, 1877 में **रजनी, 1881 में **राजसिंह* और 1884 में *देवी चौधुरानी* भी लिखीं। उन्होंने 1872 में *बंगदर्शन* नामक मासिक पत्रिका निकाली।


देश प्रेमी बंकिमचंद्र चटर्जी का निधन 8 अप्रैल, 1894 को हुआ।