राष्ट्रसेवा के प्रतीक: कुप्प. सी. सुदर्शन का जीवन दर्शन

Posted on: 2025-06-27


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कुप्पाहल्ली सीतारामैया सुदर्शन, जिन्हें सामान्यतः कुप्प. सी. सुदर्शन के नाम से जाना जाता है, भारतीय राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के पाँचवे सरसंघचालक थे। वे 2000 से 2009 तक इस महत्वपूर्ण पद पर रहे और संघ की विचारधारा तथा कार्यप्रणाली को सुदृढ़ करने में अपना अमूल्य योगदान दिया। उनका जीवन हिंदू समाज के संगठन और उसके सामूहिक उत्थान के उद्देश्य से प्रेरित था।


सुदर्शन जी का जन्म 18 जून 1931 को रायपुर (अब छत्तीसगढ़) में हुआ था। उनके माता-पिता कर्नाटक के मंड्या जिले के कुप्पाहल्ली गांव से थे। उन्होंने जबलपुर इंजीनियरिंग कॉलेज से दूरसंचार में स्नातक की डिग्री प्राप्त की। मात्र नौ वर्ष की उम्र में उन्होंने RSS की शाखा से जुड़ना शुरू किया और 1954 में पूर्णकालिक प्रचारक के रूप में संघ सेवा में शामिल हुए। संघ के मध्य भारत, उत्तर-पूर्व और बौद्धिक विभागों में उन्होंने अनेक महत्वपूर्ण पदों पर कार्य किया।


सुदर्शन जी का मानना था कि हिंदू समाज का संगठन मात्र एक उद्देश्य नहीं, बल्कि एक व्यापक सामाजिक परिवर्तन की प्रक्रिया है। संघ की प्रार्थना में कही जाने वाली पंक्तियों की कल्पना को व्यवहारिक रूप में समाज के सामने लाना उनका लक्ष्य था। वे ऊर्जा, कृषि, गोरक्षा, जल संरक्षण जैसे क्षेत्रों में राष्ट्रीय स्वावलंबन को बढ़ावा देना चाहते थे, ताकि देश स्वाभिमान और सम्मान के साथ अपनी शक्तियों पर खड़ा हो सके।


उनके मन में यह दृढ़ विश्वास था कि भारत एक बार फिर विश्व गुरु बन सकता है। वे मानते थे कि इसके लिए भारत की जीवनशैली, सिद्धांतों और समाज में निहित गहराई में ही विश्व का मार्गदर्शन करने की क्षमता मौजूद है। सुदर्शन जी ने निराशा और उदासीनता के माहौल को दूर कर, समाज में आस्था और आत्मविश्वास जगाने का प्रयास किया।


सुदर्शन जी के जीवन में स्वामी रामकृष्ण परमहंस की वाणी, महर्षि अरविंद का विश्वास और स्वामी विवेकानन्द का मार्गदर्शन गहरे रूप से व्याप्त था। उन्होंने अपने हृदय में यह विश्वास संजोया कि भारतीय समाज में अवश्य परिवर्तन आएगा। यह विश्वास केवल उनका नहीं था, बल्कि वे इसे समाज के अन्य लोगों के हृदयों तक भी पहुंचाने में सफल रहे।


सुदर्शन जी स्वदेशी आंदोलन के कड़े समर्थक थे। उन्होंने भारतीय संस्कृति, शिक्षा और अर्थव्यवस्था के पश्चिमीकरण के विरुद्ध मुखर होकर आवाज उठाई। वे भारतीय शिक्षा प्रणाली की आलोचना करते हुए इसे भारतीय संदर्भों में पुनः स्थापित करने की आवश्यकता पर ज़ोर देते थे। उनका मानना था कि समाज की प्रगति के लिए स्वदेशी विचारों और मूल्यों को अपनाना अनिवार्य है।


15 सितंबर 2012 को रायपुर में सुदर्शन जी का निधन हो गया। उनके द्वारा किए गए कार्य और उनके विचार आज भी अनेक लोगों के लिए प्रेरणा स्रोत हैं। RSS और अन्य संगठनों ने उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित कर उनके योगदान को याद किया।


कुप्प. सी. सुदर्शन का जीवन एक समर्पित प्रचारक और समाज सुधारक के रूप में हमारे सामने आता है, जिन्होंने विश्वास, धैर्य और कर्म के बल पर भारतीय समाज के उज्जवल भविष्य के लिए प्रयास किया।