साइंस: 1962 की गर्मियों में, मिशेल सिफ्रे नाम के एक वैज्ञानिक ने एक अनोखा प्रयोग शुरू किया। वह फ़्रांसीसी आल्प्स की एक 130 मीटर गहरी गुफा में ग्लेशियर ढूँढ़ने गए, लेकिन बाद में उनका मन बदल गया। उन्होंने सोचा कि क्यों न खुद को 63 दिनों के लिए ऐसे माहौल में रखा जाए जहाँ न घड़ी हो, न सूरज की रोशनी और न ही कैलेंडर। इस प्रयोग के ज़रिए, मिशेल जानना चाहते थे कि मानव शरीर समय को कैसे समझता है। इस प्रयोग से उन्हें जो जानकारी मिली, उसने जीव विज्ञान को ही बदल दिया।
गुफा के अंदर का माहौल कैसा था? मिशेल के लिए गुफा में रहना बहुत मुश्किल था क्योंकि वहाँ का तापमान लगभग शून्य था और हवा में 98% नमी थी। यह जगह इतनी शांत थी कि यही उनकी दुनिया बन गई थी। वह यह भी नहीं बता पाते थे कि कब दिन और कब रात है, जिसकी वजह से उनके शरीर की जैविक घड़ी बिगड़ने लगी। ठंड और अकेलेपन के कारण उन्हें मानसिक और शारीरिक रूप से बहुत तकलीफ़ हुई। इस मुश्किल अनुभव ने उन्हें मानव शरीर पर अकेलेपन के असर को समझने में मदद की।
जैविक घड़ी क्या है और यह कैसे काम करती है? जैसे-जैसे दिन बीतते गए, मिशेल सिफ्रे को अजीबोगरीब बदलाव महसूस होने लगे। सूर्य के प्रकाश और घड़ी की कमी के कारण, उनके शरीर की जैविक घड़ी 24 घंटे के चक्र से विचलित होने लगी। शुरुआत में, उनका दिन 24.5 घंटे का हुआ और बाद के प्रयोगों में, उनकी जैविक घड़ी बढ़कर 36 घंटे की हो गई। यह कोई सामान्य बदलाव नहीं था क्योंकि मिशेल 24 और 36 घंटों के बीच का अंतर नहीं बता पाते थे। उन्होंने कहा, 'मैं यह नहीं बता सकता था कि कौन सा दिन लंबा है और कौन सा छोटा।'
इस खोज से वैज्ञानिकों को कैसे मदद मिली? मिशेल की खोज ने साबित कर दिया कि मानव शरीर अपनी आंतरिक घड़ी पर काम करता है जो बाहरी दुनिया से अलग हो सकती है। शुरुआत में, अन्य वैज्ञानिकों को मिशेल के शोध पर संदेह हुआ, लेकिन समय के साथ, उनके प्रयोग का महत्व बढ़ता गया। इसके बाद, क्रोनोबायोलॉजी नामक एक विज्ञान सामने आया, जो बताता है कि हमारा शरीर समय के साथ कैसे तालमेल बिठाता है। यह नींद की बीमारी से लेकर जेट लैग जैसी समस्याओं में काफी मदद करता है।