चौंसठ योगिनी मंदिर मध्य प्रदेश के जबलपुर में स्थित एक प्राचीन एवं ऐतिहासिक मंदिर है। यह भारत के चार प्रमुख चौंसठ योगिनी मंदिरों में से एक है, जो आज भी अच्छी स्थिति में विद्यमान है। इसे ‘इकंतेश्वर महादेव मंदिर’ के नाम से भी जाना जाता है। भेड़ाघाट की प्रसिद्ध संगमरमर चट्टानों के समीप स्थित यह मंदिर देवी दुर्गा की 64 अनुषंगिकाओं की प्रतिमाओं के लिए प्रसिद्ध है। इसकी अनूठी विशेषता यह है कि मंदिर के मध्य में भगवान शिव की प्रतिमा स्थापित है, जो देवी-प्रतिमाओं से घिरी हुई है। इस मंदिर का निर्माण कलचुरी वंश के शासकों द्वारा 10वीं शताब्दी में करवाया गया था।
ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य चौंसठ योगिनी मंदिर जबलपुर की ऐतिहासिक संपन्नता का प्रमाण है। प्राचीन काल में इसे ‘तांत्रिक विश्वविद्यालय’ कहा जाता था, जहां तांत्रिक साधक विशेष अनुष्ठान कर तांत्रिक सिद्धियाँ प्राप्त करने हेतु एकत्र होते थे। ऐसा माना जाता है कि इस स्थान पर महर्षि भृगु का जन्म हुआ था और उनके प्रभाव से प्रेरित होकर कलचुरी शासकों ने इस मंदिर का निर्माण करवाया। यह मंदिर तंत्र, योग और शक्ति साधना के लिए प्रसिद्ध था और आज भी यहां कुछ साधक विशेष अनुष्ठान करने आते हैं।
मंदिर की संरचना एवं स्थापत्य कला यह मंदिर अपनी अद्भुत स्थापत्य कला के लिए प्रसिद्ध है। इसका निर्माण वृत्ताकार (गोलाकार) शैली में किया गया है, जिसकी चारदीवारी करीब 10 फुट ऊंची है। इस चारदीवारी के अंदर 64 योगिनियों की प्रतिमाएँ विभिन्न मुद्राओं में स्थापित हैं। मंदिर के मध्य में भगवान शिव और माता पार्वती की नंदी पर वैवाहिक वेशभूषा में विराजमान पत्थर की दुर्लभ प्रतिमा स्थित है। ऐसा माना जाता है कि इस प्रकार की प्रतिमा पूरे भारत में अन्यत्र कहीं नहीं मिलती।
मंदिर के परिसर में प्रवेश के लिए केवल एक संकीर्ण द्वार बनाया गया है। इस गोलाकार चारदीवारी के अंदर खुला प्रांगण है, जिसके मध्य में एक ऊँचा चबूतरा स्थित है। इस चबूतरे पर शिवलिंग स्थापित किया गया है, जहाँ भक्तजन पूजा-अर्चना करते हैं। मंदिर का दक्षिणी भाग इसका मुख्य क्षेत्र है, जहाँ भगवान शिव और माता पार्वती की मूर्ति एक कक्ष में स्थित है। इसके सामने एक बड़ा बरामदा बना हुआ है।
धार्मिक महत्व एवं मान्यताएँ यह मंदिर आदि शक्ति माँ काली के विभिन्न रूपों को समर्पित है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, माता दुर्गा ने घोर नामक दैत्य का वध करने हेतु 64 योगिनियों का अवतार लिया था। इन्हीं योगिनियों को यहाँ मूर्तिरूप में स्थापित किया गया है। कुछ किंवदंतियों के अनुसार, ये सभी योगिनियाँ माता पार्वती की सखियाँ थीं और तंत्र साधना में निपुण थीं।
ऐसा भी कहा जाता है कि ये 64 योगिनियाँ तपस्विनियाँ थीं, जिन्हें राक्षसों ने मार दिया था। इन राक्षसों का संहार करने के लिए स्वयं माता दुर्गा ने इस स्थान पर प्रकट होकर शक्ति प्रकट की थी। इसलिए इस स्थान को शक्ति साधना का केंद्र माना जाता है।
मुगल आक्रमण और मंदिर का पुनरुद्धार मुगल आक्रमण, विशेष रूप से औरंगजेब के शासनकाल में, इस मंदिर को क्षति पहुँची थी। कहा जाता है कि औरंगजेब ने यहाँ स्थित 64 योगिनियों की प्रतिमाओं को खंडित कर दिया था। बावजूद इसके, मंदिर का मूल ढांचा आज भी सुदृढ़ स्थिति में विद्यमान है और भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) ने इसे संरक्षित स्मारक घोषित किया है।
रानी दुर्गावती और मंदिर से जुड़ी मान्यताएँ मंदिर के सैनटोरियम में एक शिलालेख देखा जा सकता है, जो गोंड रानी दुर्गावती की इस मंदिर की यात्रा से संबंधित है। एक मान्यता के अनुसार, इस मंदिर को रानी दुर्गावती के महल से जोड़ने के लिए एक गुप्त सुरंग भी थी। हालांकि, समय के साथ यह सुरंग ध्वस्त हो चुकी है।
तंत्र साधना एवं गोलकी मठ इतिहासकारों के अनुसार, यह मंदिर तंत्र साधना का प्रमुख केंद्र था। मध्यकाल में इसे ‘गोलकी मठ’ के नाम से जाना जाता था, जहाँ तंत्र शास्त्र की शिक्षा दी जाती थी। यह मठ इतना प्रसिद्ध था कि इसकी शाखाएँ दक्षिण भारत तक फैली हुई थीं। कहा जाता है कि चालुक्य राजकुमारी नोहला देवी और युवराज देव प्रथम ने मिलकर इस मठ की स्थापना की थी। हालांकि, मुगल आक्रमण के बाद यह केंद्र धीरे-धीरे बंद हो गया।
चौंसठ योगिनी मंदिर का आध्यात्मिक महत्व एक किंवदंती के अनुसार, जब भगवान शिव और माता पार्वती भ्रमण करते हुए भेड़ाघाट के पास पहुँचे, तो उन्होंने एक ऊँची पहाड़ी पर विश्राम करने का निश्चय किया। यहाँ तपस्या कर रहे सुवर्ण नामक ऋषि भगवान शिव से अत्यंत प्रभावित हुए और प्रार्थना की कि वे इस स्थान पर स्थायी रूप से विराजमान हों। अपनी तपस्या को सफल बनाने के लिए ऋषि सुवर्ण ने नर्मदा में समाधि ले ली। इस कारण यह मंदिर शक्ति और साधना का प्रमुख स्थल बन गया।
पर्यटन एवं महत्त्व आज यह मंदिर जबलपुर का एक प्रमुख पर्यटन स्थल है। संगमरमर चट्टानों और नर्मदा नदी के किनारे स्थित यह मंदिर अपनी अनोखी वास्तुकला, आध्यात्मिक ऊर्जा और ऐतिहासिक धरोहर के लिए प्रसिद्ध है। हर साल हजारों श्रद्धालु और पर्यटक इस मंदिर की भव्यता का दर्शन करने आते हैं।
चौंसठ योगिनी मंदिर जबलपुर न केवल एक धार्मिक स्थल है, बल्कि यह भारतीय स्थापत्य कला और इतिहास का उत्कृष्ट उदाहरण भी है। तंत्र साधना, शक्ति उपासना और शैव परंपरा से जुड़े इस मंदिर का महत्व आज भी बरकरार है। यह मंदिर शक्ति और भक्ति का अद्भुत संगम है, जो भारत की सांस्कृतिक एवं ऐतिहासिक धरोहर को संजोए हुए है।