आज हम उस महापुरुष को श्रद्धा से याद कर रहे हैं, जिनके शौर्य, बलिदान और अदम्य साहस ने भारतीय इतिहास को स्वर्ण अक्षरों से सजाया — मेवाड़ के महान योद्धा, महाराणा संग्राम सिंह, जिन्हें हम राणा सांगा के नाम से जानते हैं।
राणा सांगा का जन्म 12 अप्रैल 1482 को राजस्थान के मालवा क्षेत्र में हुआ था। वे मेवाड़ के सिसोदिया वंश के गौरवशाली राजा राणा रायमल और रानी रतन कुंवर के पुत्र थे। उनके दादा, राणा कुंभा, भी राजपूती वीरता और संस्कृति के प्रतीक रहे। राणा सांगा ने अपने पूर्वजों की विरासत को और अधिक ऊँचाइयों तक पहुँचाया।
राजा बनने की राह उनके लिए आसान नहीं थी। अपने ही भाइयों, पृथ्वीराज और जयमल, से सत्ता संघर्ष करते हुए उन्होंने एक आँख खो दी, लेकिन उनका दृष्टिकोण और आत्मबल अडिग रहा। वर्ष 1508 में उन्होंने मेवाड़ की बागडोर संभाली और एक साहसी, न्यायप्रिय तथा प्रेरक शासक के रूप में उभरे।
राणा सांगा ने 100 से अधिक युद्ध लड़े और उनमें से 99 में जीत हासिल की — यह कोई साधारण उपलब्धि नहीं, बल्कि वीरता की पराकाष्ठा थी। उनका शरीर घावों से भरा था, एक हाथ और एक पैर युद्ध में खो चुके थे, फिर भी उनका हौसला कभी नहीं टूटा। वे न केवल योद्धा थे, बल्कि एक रणनीतिकार, एक नेता और राजपूतों को एकजुट करने वाले महानायक भी थे।
1526 में बाबर ने पानीपत की पहली लड़ाई जीतकर दिल्ली पर कब्जा किया। उसके सामने सबसे बड़ा और बहादुर प्रतिद्वंद्वी बनकर उभरे राणा सांगा।
1527 में खानवा की लड़ाई में प्रारंभिक बढ़त राणा की सेना के पक्ष में थी, लेकिन राजा शिलादित्य के विश्वासघात ने युद्ध का रुख पलट दिया। बाबर की सेना ने न केवल जीत हासिल की, बल्कि युद्ध के बाद मृत सैनिकों की खोपड़ियों से मीनारें बनाकर क्रूरता का भयावह प्रदर्शन किया।
अंतिम प्रयास और बलिदान
खानवा की हार के बाद भी राणा सांगा झुके नहीं। उन्होंने जंगलों में रहकर एक नई रणनीति के तहत वापसी की योजना बनाई। लेकिन कुछ भयभीत सरदारों ने बाबर के डर से उन्हें ज़हर दे दिया। 30 जनवरी 1528 को राणा सांगा का देहावसान हुआ।
उनकी मृत्यु के साथ ही भले ही भारत में मुगल साम्राज्य की नींव और मजबूत हुई हो, परंतु राजपूती साहस और आत्मगौरव की लौ जो उन्होंने जलायी, वह आज भी बुझी नहीं है।
राणा सांगा की प्रेरणादायक विशेषताएँ
युद्ध में एक आंख, एक हाथ और एक पैर गंवाने के बावजूद अद्वितीय साहस
100 युद्धों में 99 बार विजय
राजपूत एकता के लिए सतत प्रयासरत
यहां तक कि बाबर ने भी उन्हें “हिंदुस्तान का सबसे बड़ा शासक” कहा
नीति, नेतृत्व और बलिदान का जीता-जागता प्रतीक
राणा सांगा केवल एक नाम नहीं, बल्कि साहस, निष्ठा और स्वाभिमान का प्रतीक हैं। उनका जीवन आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा का स्रोत रहेगा।
आज उनकी जयंती पर हम उन्हें कोटिशः नमन करते हैं और उनके आदर्शों को अपने जीवन में उतारने का संकल्प लेते हैं।