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महाकुम्भनगर, 28 जनवरी। दलाई लामा के आचार्य कुंदलिंग रिंपोचे ने कहा कि हिंदू और बौद्ध परंपराएँ अहिंसा, करुणा और आत्मबोध के माध्यम से मानवता को जोड़ने का कार्य करती हैं। इन मूल्यों को अपनाकर विश्व में शांति और सह-अस्तित्व की भावना को प्रोत्साहन दिया जा सकता है।
साधना और अनुशासन के माध्यम से धर्म का प्रचार-प्रसार किया जाना चाहिए, जिससे आध्यात्मिक चेतना का विस्तार हो सके। वह मंगलवार को महाकुंभ के सेक्टर 18 स्थित विश्व हिंदू परिषद के शिविर में आयोजित बौद्ध सम्मेलन को संबोधित कर रहे थे।
सम्मेलन में विश्व हिंदू परिषद के केंद्रीय महामंत्री संगठन मिलिंद परांडे ने कहा कि भारत की धार्मिक परंपरा में सनातन संस्कृति अनेक पंथों को समाहित करने वाली रही है। भगवान बुद्ध की शिक्षाएँ भी हिंदू समाज का अभिन्न अंग हैं। बुद्ध ने आत्मप्रदीपन (अप्प दीपो भव) का संदेश दिया, जो हिंदू साधना पद्धति में भी निहित है।
बौद्ध धर्म की करूणा और अहिंसा की अवधारणा हिंदू धर्म के मूलभूत सिद्धांतों से जुड़ी हुई है। उन्होंने यह भी कहा कि बौद्ध धर्म और हिंदू समाज की एकता किसी मत-वैभिन्न्य का नहीं, बल्कि सह-अस्तित्व और सांस्कृतिक एकता का प्रतीक है। बौद्ध धर्म के संत-परंपरा, संन्यास, ध्यान और मूर्ति पूजा जैसे तत्व हिंदू परंपरा के समान ही हैं। बौद्ध समाज ने श्रीराम जन्मभूमि आंदोलन से लेकर हिंदू समाज की एकता में प्रारंभ से ही महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
कार्यक्रम में उपस्थित विद्वानों और धर्माचार्यों ने इस बात पर बल दिया कि हिंदू और बौद्ध परंपराओं के बीच सह-अस्तित्व और आध्यात्मिक समन्वय से न केवल भारत बल्कि पूरे विश्व में शांति और करुणा का संदेश फैलाया जा सकता है।
इस अवसर पर आका रिंपोचे त्सारिंग चाइजी (गंदेन चोसलिंग मठ, कर्नाटक), धम्मपिय भंते, गेशे डोंडुप (अभिध्यक्ष, बोमडिला मठ, अरुणाचल प्रदेश) तथा गेशे लामा छेपेल ज़ोटपा सहित कई बौद्ध धर्माचार्य उपस्थित रहे।
इसके अलावा विहिप के केंद्रीय सह महामंत्री संगठन विनायक राव देशपांडे , संयुक्त महामंत्री विश्व हिन्दू परिषद कोटेश्वर शर्मा सहित अनेक बौद्ध भिक्षु और धर्माचार्य उपस्थित रहे। विशेष रूप से अरुणाचल प्रदेश के टूटिंग और तवांग संप्रदाय से आए लामा एवं भंते भी कार्यक्रम में सम्मिलित हुए। इसके अलावा, विदेशों से पधारे कई बौद्ध भिक्षुओं ने भी हिंदू-बौद्ध एकता को लेकर अपने विचार साझा किए।