‘अंग्रेजों भारत छोड़ो’ संघर्ष का था ये नारा,
आंदोलन के लिए गांधी ने सबको था पुकारा।
आजादी का गीत गाते सभी सुबह – शाम,
भारत छोड़ो आंदोलन के,वीरों को सलाम।
भारत छोड़ो आंदोलन गाँधी जी के 3 सबसे प्रमुख आंदोलनों में से एक था ,जैसा कि नामसे स्पष्ट है इसआंदोलन में पूर्णस्वराज की मांग प्रबलता से रखी गई, एक अंतरिम सरकार बनाने का सुझाव दिया गया और अंग्रेजी राज की भारत से समाप्ति के लिए अंतिम आह्वान किया गया | इस आंदोलन को“ अगस्तक्रांति” के नाम से भी जाना जाता है भारत की आज़ादी से सम्बन्धित इतिहास में दो पड़ाव सबसे ज़्यादा महत्त्वपूर्ण नज़र आते हैं - प्रथम '1857 ई. का स्वतंत्रता संग्राम' और द्वितीय '1942 ई. का भारत छोड़ो आन्दोलन'। 14 जुलाई, 1942 को वर्धा में हुई कांग्रेस कार्य समिति की बैठक में गाँधी जी को आंदोलन की औपचारिक शुरुआत के लिए अधिकृत किया गया | 8 अगस्त, 1942 को बम्बई में कांग्रेस कार्य कारिणी समिति की बैठक हुई जिसमेंअंग्रेजों से भारत छोड़ने और एक “कामचलाऊ” सरकार के गठन की बात कही गई |
स्वतंत्रता की महान लड़ाई
'भारत छोड़ो आन्दोलन' या 'अगस्त क्रान्ति भारतीय स्वतन्त्रता आन्दोलन' की अन्तिम महान् लड़ाई थी, जिसने ब्रिटिश शासन की नींव को हिलाकर रख दिया। क्रिप्स मिशन के ख़ाली हाथ भारत से वापस जाने पर भारतीयों को अपनी छले जाने का अहसास हुआ। दूसरी ओर दूसरे विश्वयुद्ध के कारण परिस्थितियाँ अत्यधिक गम्भीर होती जा रही थीं। जापान सफलतापूर्वक सिंगापुर, मलाया और बर्मा पर क़ब्ज़ा कर भारत की ओर बढ़ने लगा, दूसरी ओर युद्ध के कारण तमाम वस्तुओं के दाम बेतहाश बढ़ रहे थे, जिससे अंग्रेज़ सत्ता के ख़िलाफ़ भारतीय जनमानस में असन्तोष व्याप्त होने लगा था। जापान के बढ़ते हुए प्रभुत्व को देखकर 5 जुलाई, 1942 ई. को गाँधी जी ने हरिजन में लिखा "अंगेज़ों! भारत को जापान के लिए मत छोड़ो, बल्कि भारत को भारतीयों के लिए व्यवस्थित रूप से छोड़ जाओ।"
देश की आजादी के लिए बड़े पैमाने पर अहिंसक तर्ज पर जन संघर्ष शुरू करने की मंजूरी दी गई थी। प्रस्ताव पारित होने के बाद, गांधी ने अपने भाषण में कहा: " एक मंत्र है, एक छोटा मंत्र, जो मैं आपको देता हूं।
आप इसे अपने दिल में अंकित कर लें और अपनी हर सांस में इसे अभिव्यक्त होने दें ,मंत्र है करो या मरो। हम या तो आजाद होंगे या इस प्रयास में मर जाएंगे। भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान "भारत छोड़ो" और "करो या मरो" भारतीय लोगों की लड़ाई का नारा बन गया।
9 अगस्त 1942 की सुबह तड़के कांग्रेस के अधिकांश नेताओं को गिरफ्तार कर लिया गया। वे देश के विभिन्न भागों की जेलों में बंद थे। कांग्रेस पर प्रतिबंध लगा दिया गया था। देश के कोने-कोने में हड़ताल और जुलूस निकाले गए।
पूरे देश में गोलीबारी, लाठी चार्ज और गिरफ्तारियां हुईं। लोगों ने गुस्से में हिंसक गतिविधियों को भी अंजाम दिया। लोगों ने सरकारी संपत्ति पर हमला किया, रेलवे लाइनों को क्षतिग्रस्त कर दिया गया और पोस्ट और टेलीग्राफ को बाधित कर दिया गया।
कई जगहों पर पुलिस से झड़पें भी हुई। सरकार ने आंदोलन के बारे में समाचारों के प्रकाशन पर प्रतिबंध लगा दिया। कई अखबारों ने प्रतिबंधों को मानने के बजाय बंद करने का फैसला किया।
60 हजार से अधिक लोगों को हुई जेल
1942 के अंत तक लगभग 60,000 लोगों को जेल में डाल दिया गया था और सैकड़ों लोग मारे गए। मरने वालों में कई छोटे बच्चे और बूढ़ी औरतें भी थीं। छात्रों और सैकड़ों अन्य लोगों को जुलूसों में भाग लेने के दौरान गोली मार दी गई थी।
देश के कुछ हिस्से जैसे यूपी में बलिया, बंगाल में तामलुक, महाराष्ट्र में सतारा, कर्नाटक में धारवाड़ और उड़ीसा में बालासोर और तलचर ब्रिटिश शासन से मुक्त हुए और वहां के लोगों ने अपनी सरकारें बनाईं।
वहीं, इस दौरान जय प्रकाश नारायण, अरुणा आसफ अली, एसएम जोशी, राम मनोहर लोहिया और अन्य लोगों द्वारा आयोजित क्रांतिकारी गतिविधियां लगभग पूरे युद्ध काल के दौरान जारी रहींथी।
गांधी जी को अहमदनगर किले में नजरबंद कर दिया लेकिन जैसे ही इस आंदोलन की शुरूआत हुई, 9 अगस्त 1942 के दिन निकलने से पहले ही कांग्रेस वर्किंग कमेटी के सभी सदस्य गिरफ्तार हो चुके थे और कांग्रेस को गैरकानूनी संस्था घोषित कर दिया गया था, सरकारी आंकड़ों के अनुसार इस जनान्दोलन में 940 लोग मारे गए थे और 1630 घायल हुए थे जबकि 60229 लोगों ने गिरफ्तारी दी थी।
शासन के प्रतीकों के खिलाफ प्रदर्शन करने सड़कों पर निकल पड़े और उन्होंने सरकारी इमारतों पर कांग्रेस के झंडे फहराने शुरू कर दिये। लोगों ने गिरफ्तारियां देना और सामान्य सरकारी कामकाज में व्यवधानउत्त्पनकरना शुरू कर दिया। विद्यार्थी और कामगार हड़ताल पर चले गये। बंगाल के किसानों ने करों में बढ़ोतरी के खिलाफ संघर्ष छेड़ दिया। सरकारी कर्मचारियों ने भी काम करना बंद कर दिया, यह एक ऐतिहासिक क्षण था। भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान ही डॉ. राम मनोहर लोहिया, जय प्रकाश नारायण और अरुणा आसफ अली जैसे नेता उभर कर सामने आये।
1943 के अंत तक भारत को संगठित कर दिया भारत छोड़ो आंदोलन को अपने उद्देश्य में आशिंक सफलता ही मिली थी लेकिन इस आंदोलन ने 1943 के अंत तक भारत को संगठित कर दिया। युद्ध के अंत में, ब्रिटिश सरकार ने संकेत दे दिया था कि संत्ता का हस्तांतरण कर उसे भारतीयों के हाथ में सौंप दिया जाएगा। इस समय गांधी जी ने आंदोलन को बंद कर दिया जिससे कांग्रेसी नेताओं सहित लगभग 100,000 राजनैतिक बंदियों को रिहा कर दिया गया।